Best Explained सुंदर कांड रामायण कथा | Sundara Kanda Ramayan in Hindi

इस लेख में हम आपको रामायण के पाचवें भाग सुंदर कांड – Sundara Kanda की सम्पूर्ण कहानी के बारें में विस्तार से लिखा है,

Ramayan in Hindi में 7 अलग-अलग तरह के कांड हैं जो कि इस प्रकार है –

  1. बालकांड – Balakanda
  2. अयोध्याकांड – Ayodhya Kanda
  3. अरण्यकांड – Aranya Kanda
  4. किष्किन्धा कांड – Kishkinda Kanda
  5. सुंदर कांड – Sundara Kanda
  6. लंका कांड – Lanka Kand
  7. लवकुश कांड – Luv Kush Kanda

महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के सुंदर कांड – Sundara Kanda का पाठ पाँचवाँ चरण है। आपको बता दें कि सुंदर कांड – Sundara Kanda के पाठ में पवनसुत हनुमान जी की महिमा का गुणगान किया गया है।

इस चरण के नायक हनुमान जी हैं, जिनके द्वारा किए गए महान कार्यों का इस पाठ में बहुत वर्णन किया गया है। सुंदर कांड – Sundara Kanda में हनुमान जी के लंका जाने, विभीषण से मिलने, सीता से मिलने और उन्हें श्रीराम की मुहर देने, अक्षय कुमार की हत्या, लंका दहन और लंका से लौटने की घटनाएं।

आपको बता दें कि रामायण में सुंदरकांड की कहानी अलग है। संपूर्ण रामायण कथा में श्री राम के गुणों और उनके प्रयास को दर्शाया गया है, लेकिन सुंदर कांड – Sundara Kanda ही एक ऐसा सर्ग है, जो केवल हनुमानजी की शक्ति और विजय के बारे में बताया गया है। महाकाव्य रामायण में सुंदर कांड – Sundara Kanda के पाठ का अपना ही महत्ता है।

ऐसी मान्यता है कि जब भी किसी व्यक्ति के जीवन में अधिक समस्याएं आती हैं, कोई काम नहीं होता है, आत्मविश्वास की कमी होती है, तो सुंदर कांड – Sundara Kanda का पाठ करने से सभी समस्याओं का समाधान अपने आप निकलने लगता है।

आपको बता दें कि कई बार विद्वान और ज्योतिषी भी कष्टों से छुटकारा पाने के लिए सुंदर कांड – Sundara Kanda का पाठ करने की सलाह देते हैं। आइए जानते हैं इस पाठ की कहानी के बारे में-


सुंदर कांड रामायण कथा | Sundara Kanda Ramayan in Hindi

लंका में वीर हनुमान जी का प्रवेश ऊंचे पर्वतों को पार करते हुए हनुमान जी लंका में पहुंच गए किन्तु लंका के चारों ओर कड़े पहरे थे। खूनी राक्षस एकदम पग-पग पर खड़े पहरा दे रहे थे। किन्तु हनुमान जी तो उनके रुप बनाने में बड़े होशियार थे उन्होंने झट से अपने शरीर को बहुत छोटा किया और पहरेदारों को चकमा देकर अन्दर घुस गए।

शहर के अन्दर जाकर उन्होंने शहर का कोना-कोना छान मारा परन्तु सीता जी का कोई भेद न मिला । उधर सीता जी के न मिलने की चिन्ता, इधर भूख भी हनुमान जी को तंग करने लगी थी।

बस इसी खोज में वे अशोक वाटिका तक पहुंच गए। यह रावण का अपना शाही बाग था जिसमें संसार भर के सुन्दर-सुन्दर फूल हजारों प्रकार के फल लगे हुए थे।

अशोक वाटिका में बहुत से राक्षस पहरा दे रहे थे। हनुमान जी बहुत ऊंचे वृक्ष पर चढ़कर इधर-उधर देखने लगे। अचानक उन्होंने एक कोने में कुछ राक्षसियों से घिरी हई एक सुन्दर स्त्राी को देखा जो बहुत ही उदास बैठी थी। यही हैं सीता जी! इन राक्षसों के देश में ऐसी सुन्दर स्त्री सीताजी के सिवाय और कोई नहीं हो सकती है।

परन्तु अब सीता जी से मिला जाए तो कैसे? इसी सोच में डूबे हनुमान जी वृक्ष पर बैठ गए। सीता जी की आंखों में आंसू देखकर हनुमान जी का दिल डूबने लगा था, किन्तु वे बहुत मजबूर थे । अब वे यदि सीताजी के पास भी जाते हैं तो वह क्या सोचेंगी। उसे अपना शत्रु ही समझेगी क्योंकि उस स्थान पर अपने किसी शुभचिंतक के आने की तो आशा ही नहीं है।

आते समय उन्होंने श्रीराम से उनके वंश से लेकर सीता बनवास तक की सारी कहानी तो सुन ली थी। बस वही कहानी उनका परिचय बन सकती है।

रात होने पर सारी राक्षसियां तो सो गई अब केवल सीता ही जाग रही थी। हनुमान जी अपना मौका ताड़ा और उसी समय अपने आप राम कथा सुनानी आरम्भ कर दी।

राम कथा और वह भी लंका देश में यह कैसे संभव हो सकता है, यह पापी लोग राम के बारे क्या जानें ।

यह तो अवश्य कोई राम भक्त ही हो सकता है यही सोचकर उन्होंने उस वृक्ष के ऊपर देखा जिस पर हनुमान जी बैठे थे।

पहले तो सीताजी इस विचित्र बन्दर को देखकर डर गई। फिर भी अपने-आप पर काबू पाते हुए पूछने लगी।

तुम कौन हो? और इस वृक्ष पर बैठे क्या कर रहे हो ?

माता सीता मैं राम भक्त हनुमान हूं और श्रीराम का दूत बनकर आपकी खोज में इस पापी नगरी तक आया हूं।

इसका क्या प्रमाण है कि आप राम भक्त हनुमान हैं या मेरे शत्रु जैसा कि रावण मेरे साथ कर चुका है।

माता सीता! भगवान राम ने आते समय अपनी निशानी के रुप में यह अंगूठी दी थी। यदि आप इसे पहचान लें तो इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है।

सीताजी ने वह अंगूठी देखी तो खुशी से झूमते हुए उसे अपने सीने से लगाकर बोलने लगी

मेरे राम, मेरे सुहाग, मेरे प्रभु, मेरे जीवन आप क्यों मुझसे रुठ गए । मुझसे ऐसी कौन-सी भूल हो गई जिसकी सजा मुझे दे रहे हो । मुझे क्षमा कर दो प्रभु क्षमा कर दो।

वीर हनुमान्! आपने तो मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है जो मुझे मेरे प्रभु की निशानी लाकर दी।

मां सीता! यह उपकार नहीं धर्म हैं, कर्त्तव्य है बस मैंने अपने कर्त्तव्य का पालन किया है। हां, अब वह दिन दूर नहीं जब हम लोग लंका पर आक्रमण करके आपको ले जायेंगे।

हनुमान जी! वह शुभ दिन कब आयेगा।

अति शीघ्र माता! चिन्ता मत करो । मैं अभी श्रीरामजी के पास जाकर लंका पर आक्रमण करने की तैयारी करता हूं। बस आप मुझे अपनी कोई भी निशानी दे दें, जिससे रामजी के मन को शान्ति मिल सके।

सीता ने अपनी चूड़ामणि उतार कर हनुमान जी को देते हुए कहा-मेरे राम को यह देना और उन्हें मेरी ओर से सौ-सौ प्रणाम कहना कि मैं दिन-रात उन्हीं की प्रतीक्षा करती हूं।

हनुमान जी सीताजी के चरण छूकर वाटिका से बाहर निकल गये।

लंका दहन

सीता जी से विदा लेकर हनुमान वाटिका में से जैसे ही बाहर निकले तो मन में यह विचार आया कि अब लंका में आये हैं तो रावण को कुछ चमत्कार तो दिखाना ही चाहिये।

इस पापी को कैसे पता चलेगा कि कोई रामदूत लंका में आया था।

यही सोचकर उन्होंने बाग के पहरेदारों को मारना शुरु कर दिया । जो भी राक्षस हनुमान के सामने आया वही पिटता रहा कुछ लोगों को तो हनुमान जी ने जान से भी मारा । इस मार को देखकर राक्षस डर के मारे भाग खड़े हुए। उन्होंने रावण के पास जाकर कहा-महाराज आपकी दुहाई है दुहाई एक ही बन्दर ने आकर सब राक्षस को मार डाला। रावण ने उसी समय अपने वीर पुत्र अक्षय कुमार को हनुमान को पकड़ने के लिए भेजा तो वह अपनी बहुत बड़ी सेना को लेकर बाग की ओर गया।

हनुमान जी ने जैसे ही अक्षय कुमार का रथ अपनी ओर आते देखा तो एक बहुत बड़ा वृक्ष उखाड़ कर उसके रथ पर दे मारा।

अक्षय कुमार के साथ-साथ उसका साथी भी मारा गया ।

जैसे ही रावण को यह सूचना मिली कि उसका बेटा अक्षय कुमार भी उस बन्दर के हाथों मारा गया है तो उसने उसी समय अपने बड़े लड़के मेघनाथ को बुलाकर कहा कि अब तुम ही जाकर उस बन्दर को पकड़कर हमारे सामने उपस्थित करो।

मेघनाथ ऐसा वीर था जिसने इन्द्र देवता को हराकर इन्द्रजीत की पदवी पायी थी। इसलिए हनुमान जब उससे युद्ध करने लगे तो वह बड़ी वीरता से लड़ा जैसे ही हनुमान जी वृक्ष उठाकर मेघनाथ पर मारते तो वह झट से उस वृक्ष के टुकड़े-टुकड़े कर फेंक देता।

दोनों में बड़ा भयंकर युद्ध हुआ जिसे देखकर लंकावासी भी मुंह में ऊंगलियां डालने लगे।

अन्त में मेघनाथ ने यह देखा कि हनुमान उनके काबू में नहीं आ रहे तो ब्रह्मास्त्र निकाल हनुमान जी पर छोड़ दिया, ब्रह्मास्त्र का सम्मान तो हनुमान जी को करना था इसलिए उसकी चोट खाकर वे धरती पर गिर पड़े।

सारे राक्षस खुश हो गए कि उन्होंने अपने शत्रु को मार गिराया। मेघनाथ ने उसे जंजीरों में बांधकर रावण के दरबार में पेश करने के लिए आदेश दिए स्वयं रथ में बैठ अपनी विजय पर खुश होता हुआ चलने लगा ताकि अपने पिता को अपनी विजय की खबर सुना सके, उसके रथ के पीछे-पीछे सारे राक्षस हनुमान को बन्दी बनाये लिए जा रहे थे।

हनुमान जी को जब रावण के सामने पेश किया तो वे बड़े आनन्द से मुस्कुरा रहे थे, रावण उसकी हंसी देखकर और भी जल गया उसने अपने सैनिकों को कहा-इस शैतान बन्दर की गर्दन काटकर लंका के बड़े द्वार पर लटका दो।

रावण के छोटे भाई विभीषण ने उठकर कहा

भैया रावण यह हनुमान रामचन्द्र जी का दूत है, किसी भी दूत का बध करना राजनीति के विरुद्ध है इसलिए इसे ऐसी सजा दीजिए जिसे इसे दण्ड भी मिले और आप पापी भी न कहलायें।

तो तुम ही इसके लिए कोई दण्ड बताओ।

भैया मेरे विचार में तो इसकी दुम में आग लगाकर जला दो। ताकि यह सारी उम्र पूंछकटा बना रहे और इसे यह भी पता चलता रहे कि मैंने लंका में जाकर कोई अपराध किया था।

विभीषण जी की इस राय से सब ही सहमत हो गए। उसी समय हनुमान जी की दुम में आग लगा दी गई, ऊपर से आग भडकाने वाला तेल डाल दिया गया। जैसे ही हनमान जी की दुम को आग लगाई गई राक्षस लोग तालियां पीटने लगे हनुमान जी छलांग लगाते हुए बड़े-बड़े मकानों की छतों पर कूदते ‘भागने लगे।

जिधर से भी हुनमान जी जाते उधर ही आग लग जाती, देखते-देखते सारी लंका में आग लग गई। लंका जल रही थी,राक्षस लोग इस आग को बुझाने के प्रयत्न करने लगे, हनुमान जी सागर में छलांग लगाकर अपनी दुम का आग बुझा लिया, किन्तु लंका की आग दूर से ही दिखाई दे रही थी, बड़े सोने के भवन मिट्टी में मिल गए।

हनुमान जी की वापसी

आखिरी बार हनुमान जी माता सीता जी को प्रणाम करके वापस चल पड़े, एक बार वे हवा में उड़ने लगे । सागर तट पर अंगद और पूरी बानर सेना पहले से ही उनकी प्रतीक्षा में बैठे थे उन्हें पता था कि हनुमान अवश्य ही सफल होकर लौटेंगे । हनुमान जी को देखते ही सब उनकी जय-जयकार करने लगे, सारा वातावरण हनुमान की जय-जयकार से गूंज उठा।

प्रवर्षन पर्वत पर पहुकचर सब वानर खुशी से नाचने लगे, सुग्रीव समझ गए थे कि बानरों की इस खुशी का अर्थ यही है कि हनुमान जी अपने कार्य में सफल होकर लौटे हैं । राम और लक्ष्मण भी बाहर आ गए उन्होंने आते ही हनुमान जी से पूछा-कहो पवनपुत्र क्या खबर लाए हो?

श्रीराम जी! आपकी कृपा से माता सीता बिल्कुल कुशलता से हैं।

क्या तुम सीता से मिले थे?

हां प्रभु! मैं मिला ही नहीं, बल्कि उनसे बातें भी करके आया हूं।

इस बात का कोई प्रमाण ? जैसे राम को हनुमान जी को बातों पर विश्वास न आ रहा हो।

यह सीता जी का एक जेवर है, उसे उन्होंने अपनी निशानी के रुप में आपके पास भेजा है। श्रीराम ने उस जेवर को हनुमान जी से लेकर चुम लिया और खुशी से हनुमान जी को

गले लगाते हुए बोले-वाह-वाह वीर हनुमान वास्तव में ही आप महान हैं, आपने सीता को खोजकर हमारा मन खुश कर दिया है अब हम यथाशीघ्र अपनी सीता के पास पहुंचेंगे।

महाराज! सुग्रीव आप अपनी सेनाओं को युद्ध की तैयारी के आदेश दीजिए । हमारे पास प्रतीक्षा का समय बिल्कुल नहीं है इतनी बातें कहकर श्रीराम सीता के दिए चूड़ामणि की ओर बड़े प्यार से देखने लगे और साथ ही सोचने लगे।

उस पापी की कैद में न जाने सीता का क्या हाल होगा ? उन राक्षसों का खाना वह पेट भरकर कहां खाती होगी। कितने कष्ट सहन कर रही है मेरी सीता।

कितने दुःख पा रही है, राम की आंखों में आंसू आ गए थे पास बैठे लक्ष्मण ने जब अपने भाई को बच्चों की भांति रोते देखा तो उसने राम के आंसू पोछते हुए कहा

भईया! धैर्य से काम लें, यदि आप ही दिल छोटा करेंगे, तो युद्ध कौन करेगा? आप यह क्यों भूल गए कि यह वानर सेना केवल आपके ही सहारे युद्ध कर सकते हैं । यदि यह बेचारे अकेले युद्ध कर सकने योग्य होते तो फिर अब तक बालि के अत्याचार ही क्यों सहन करते । – तुम ठीक कहते हो लक्ष्मण, यह वास्तव में ही बहुत सीधे लोग हैं । इनकी शक्ति तो महान हैं, किन्तु उसका प्रयोग करने वाला कोई नहीं मिला, अब हम करेंगे उसका प्रयोग।


सुंदर कांड – Sundara Kanda in Hindi का यह पाचवें भाग कैस लगा कमेंट करके जरूर बताये, अगर आपको इसमें कुछ कमियां दिखती है तो वो भी आप जरूर बताए। उसे हम जल्द से जल्द सही कर देंगे।

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