इस लेख में हम आपको रामायण के चौथे भाग किष्किंधा कांड – Kishkinda Kanda की सम्पूर्ण कहानी के बारें में विस्तार से लिखा है,
Ramayan in Hindi में 7 अलग-अलग तरह के कांड हैं जो कि इस प्रकार है –
- बालकांड – Balakanda
- अयोध्याकांड – Ayodhya Kanda
- अरण्यकांड – Aranya Kanda
- किष्किन्धा कांड – Kishkinda Kanda
- सुंदर कांड – Sundara Kanda
- लंका कांड – Lanka Kand
- लवकुश कांड – Luv Kush Kanda
महाकाव्य रामायण में वर्णित किष्किंधा कांड – Kishkinda Kanda में राम-हनुमान की मुलाकात, वानर राजा सुग्रीव से मित्रता, भगवान राम की मित्रता, सीता को खोजने की सुग्रीव की प्रतिज्ञा, बाली और सुग्रीव के बीच युद्ध, बाली-वध, अंगद का राजकुमार, ऋतुओं का विवरण, का विस्तृत विवरण वानर सेना का संगठन उपलब्ध है।
इस महाकाव्य के किष्किंधा कांड – Kishkinda Kanda का पाठ करने से बिछड़े हुए परिवारों से मित्रता और मिलन होता है।
किष्किंधा कांड रामायण कथा | Kishkinda Kanda Ramayan in Hindi
सुबह होते ही शबरी के आश्रम से दोनों भाई वानर राज सग्रीव की ओर चल पड़े, ऊंचे पर्वत पर बैठे सुग्रीव जैसे ही दो धनुषधारियों को अपनी ओर आते देखा तो उसे यह संदेह हो गया कि कहीं भाई बालि ने उसे मारने की नयी चाल तो नहीं चली है, यही सोचकर सुग्रीव ने अपने मंत्री हनुमान से कहा किआप जाकर इन लोगों के बारे में पता लगाओ कहीं यह शत्रु केआदमी तो नहीं |
हनुमान जी उसी समय हवा में उड़ते हुए उन दोनों के पास पहुंचे और राम, लक्ष्मण को बड़े ध्यान से देखने लगे । कौन हो-तुम, हमें ऐसे घूरकर क्यो देख रहे हो? लक्ष्मण ने क्रोध में आकर हनुमान से पूछा।
मैं महाराज सुग्रीव का मंत्री हनुमान हूं । सुग्रीव ही इस पहाड़ का राजा है उसी ने मुझे आपके बारे में जानने के लिए भेजा है।
देखो वीर हनुमान, हम दोनों भाई राम और लक्ष्मण हैं हमारे पिता अयोध्यापुरी के राजा दशरथ थे । हम उन्हीं कीआज्ञा पालन करने के लिए जंगल आए हैं, किन्तु हमारा यह दुर्भाग्य समझो कि धोखे से हमारी सीता को कोई पापी उठा कर ले गया है । बस उसी की तलाश में हम भटक रहे हैं। प्रभु आप दिल छोटा न करो चलो मेरे साथ हमारे राजा सुग्रीव भी तो अपनी पत्नी के लिए चिंतित हैं, उनके अपने ही सगा भाई बालि ने उनके साथ बहुत बड़ा धोखा किया है, आप दोनों से मिल के पाप का अन्त होगा।
ठीक है हनुमान जी, हम इसी समय तुम्हारे राजा से मिलना चाहते हैं । ठीक है आप दोनों मेरे कंधों पर बैठो मैं पवनपुत्र हूं, आपको हवा में उड़ाकर ले जाऊंगा । इतनी बात कहकर हनुमानजी ने राम और लक्ष्मण को अपने कन्धों पर बैठाया और हवा में उड़ने लगे। थोड़ी देर के पश्चात वे राजा सुग्रीव के पास थे, हनुमान जी ने राजा के राम और लक्ष्मण को पूरी कहानी सुना डाली।
हनुमान जी की कृपा से सुग्रीव और राम ने मित्रता के हाथ बढ़ा दिये दोनों ने एक दूसरे की सहायता के लिए वचन दिए। राम ने सुग्रीव को अपने गले से लगाते हुए कहा, आज से हमारी मित्रता दो राजाओं जैसी होगी, हम सीता जी की खोज के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा देंगे, किन्तु इससे पूर्व हमें अपने पापी भाई बालि से बदला चुकाना है ।
इसकी चिन्ता न करो सुग्रीव, हम आपकी इच्छा अवश्य पूरी करेंगे, हमने तुम्हारे साथ मित्रता का जो हाथ बढ़ाया है। यह कभी पीछे नहीं हटेगा । हम बालि को मारकर तुम्हारा अधि कार तुम्हें वापस, दिलाकर रहेंगे। आप धन्य है प्रभु वास्तव में ही आप सर्वशक्तिमान हैं, किन्तु मुझे तो फिर भी डर लगता
कैसा डर मित्र ?
यही कि बालि भाई पापी अवश्य है, किन्तु वह पापी के साथ-साथ महाशक्ति का मालिक भी है । वह अपने सामने खड़े शत्रु की आधी शक्ति अपने अन्दर खींच लेता है । इसलिए तो उसने मुझे हरा दिया, मेरी पत्नी को भी छीन कर अपने महलों में डाल लिया । मेरे पास तो मेरे यह दो सच्चे साथी, हनुमान जी और जामवन्त बचे हैं, अब तो डर लगता है कि कहीं !..
बालि शक्तिमान है तो मैं राम हूं। मेरा जन्म केवल इस धरती पर से पाप को मिटाने के लिए ही हुआ है । आप चिन्ता मत करो और देर भी मत करो । कल सुबह उठते ही आप बालि को युद्ध करने की चुनौती दो।
यह क्या कह रहे हैं आप? बालि तो चुनौती सुनते ही मेरा गला ….
सुग्रीव जी, आप डरो मत । जब आप बालि के पास जाओगे तो मैं वृक्ष की ओट में खड़ा सब कुछ देख रहा हूंगा। तम्हें बालि से डरने की आवश्यकता नहीं है । मैं यह सारा काम खुद संभाल लूंगा जो आज्ञा महाराज! सुग्रीव ने बुझे हुए मन से कहा।
भले ही श्रीराम ने सुग्रीव को पूरी सहायता देने का वचन दिया किन्तु वह यह जानता था कि बालि हो बहादुर और ऐसी शक्ति का मालिक है, जिसे कोई हरा नहीं सकता । इसलिए वह बालि के सामने जाते हुए घबरा रहा था। मगर मरता क्या न करता वाली बात थी, वह राम के सामने बुजदिल भी तो नहीं बनना चाहता था।
इसलिए उसने, किष्किन्धा नगरी में जाकर बालि को चुनौती देते हुए कहा । देखो भईया, मेरी पत्नी और मेरे राज्य वापस कर दो नहीं तो मुझसे युद्ध के लिए तेयार हो जाओ। अरे ओ क्यों तेरी मौत फिर से मेरे पास ले आई है। जा चला जा यहां से नहीं तो अबकी बार नहीं छोडूंगा । बालि चीखा।
भईया! मैं केवल न्याय मांगने आया हूं।
अरे न्याय लेना है तो, भगवान के पास जा । बालि तो वही करता है जो उसके मन में आता है। अब तू यहां से भाग जा नहीं तो मेरा क्रोध तेरी जान ले लेगा । जान जानी है चली जाये मगर आज मैं अपना अधिकार प्राप्त करके ही रहूंगा। यह कहते हुए सुग्रीव ने अपनी गदा निकाल ली अन्दर से अब भी उसका मन कांप रहा था।
दोनों में भयंकर युद्ध होने लगा । सुग्रीव के सारे सैनिक पहाड़ों में छीपे हुए इस मृत्यु युद्ध हो देख रहे थे । वे जानते थे कि बालि का बध इतना सरल नहीं, हां सुग्रीव अवश्य मर सकता है । जब बालि ने सुग्रीव को धरती पर गिरा दिया और उसका गला काटने के लिए तलवार उठाया तो उस समय श्रीराम ने एक शक्ति शाली बाण उसकी छाती में मारा । जिसके हाथ ही बालि के गले से भयंकर चीख निकली जीवन और मृत्यु का अन्तिम चीख…।
बालि के धरती पर गिरते ही श्रीराम अपना धनुष लेकर प्रकट हुए तो बालि मृत्यु का कारण समझ गया । वह कांपते स्वर में बोला हे राम! मैंने आपका क्या बिगाड़ा था जो आपने मुझे धोखे से मारकर अपने माथे पर न मिटने वाला दाग लगा लिया । यदि वास्तव में तुम मुझसे लड़ना ही चाहते थे तो सामने आकर लड़ते । चोरों की भांति लड़े, यह अधर्म क्यों ?
बालि, तुम मेरे शत्रु नहीं हो, किन्तु यह क्यों भूलते हो कि मैं इस धरती पर केवल धर्म की रक्षा के लिए आया हूं। मैंने तो केवल इतना अधर्म किया कि तुम्हें धोखे से मारा और तुमने अपने भाई के ही स्त्री को उसने छीनकर अपने घर में रख लिया। उसका राज्य छीन लिया क्या यह अधर्म नहीं?
हां राम वास्तव में ही मैंने सबसे बड़ा अधर्म किया है। अब उसकी सजा तो मिल गयी । अब आपसे मेरी यही प्रार्थना है कि मेरे बेटे अंगद को अपने अंग लगाकर रखना । इस तारा को भी धर्म के हवाले कर रहा हूं। भईया सुग्रीव मुझसे जो भूल हो गई उसे क्षमा करना।
दोनों हाथ जोड़कर बालि ने सबसे बिदा ली और अपने पापों का प्रायश्चित किया । सुग्रीव अंगद और दूसरे सब लोग उसकी मृत्यु पर रो रहे थे।
न नाति प्रशवः कर्तव्यो प्रणयश्चते।। अभय हि, दोषस्तय, दन्तरदेग्भव ॥
बालि का अन्त हो गया । सुग्रीव को अपनी पत्नी और खोया हुआ राज्य फिर से वापिस मिल गया था।
सुग्रीव ने अपने सेनापतियों नील वीर हनुमान को बुलाकर कहा कि जैसे भी हो सीता जी की खोज करें क्योंकि हमने श्रीराम को वचन दे रखा है कि यदि आप हमें हमारा राज्य वापस दिला देंगे तो हम सीता को वापस ला देंगे।
हनुमान जी, यह सारा कार्य आप पर छोड़ता हूं। क्योंकि आपसे बड़ा राम भक्त हमारे पास कोई नहीं है।
मैं आपकी आज्ञा का पालन अवश्य करूगा महाराज! आप चिन्ता मत कीजिए मैं अभी अपनी बानर सेना को साथ ले जाकर सीता जी की खोज करता हूं। वीर अंगद भी मेरे साथ जायेंगे । मुझे खुशी है हनुमान जी कि आप अंगद को भी साथ ले जा रहे हैं । हनुमान जी सबसे पहले सागर तट पर पड़े जटायु के भाई से उन्होंने पूछा कि आपने किसी स्त्री को राते-चीखते इधर से जाते तो नहीं देखा।
देखा है, उसे पापी रावण ले जा रहा था, मगर वह तो सागर पार कर चुका है। अब तुम वहां कैसे आओगे ।
मैं पवन पुत्र हनुमान हूं यह कहकर हनुमान जी उड़ने लगे।
किष्किंधा कांड – Kishkinda Kanda in Hindi का यह चौथे भाग कैस लगा कमेंट करके जरूर बताये, अगर आपको इसमें कुछ कमियां दिखती है तो वो भी आप जरूर बताए। उसे हम जल्द से जल्द सही कर देंगे।
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