हैल्लो दोस्तों कैसे है आप सब आपका बहुत स्वागत है इस ब्लॉग पर। हमने इस आर्टिकल में Karak (कारक) in Hindi डिटेल में पढ़ाया है जो कक्षा 5 से लेकर Higher Level के बच्चो के लिए लाभदायी होगा। आप इस ब्लॉग पर लिखे गए Karak (कारक) in Hindi को अपने Exams या परीक्षा में इस्तेमाल कर सकते हैं।
Contents
कारक से तात्पर्य | कारक की परिभाषा – karak kise kahate hain – karak ki paribhasha
संज्ञा अथवा सर्वनाम के जिस रूप से उसका संबंध क्रिया के साथ जाना जाता है, उसे कारक कहत है।
जो पद हैं संबंध बताते साथ क्रिया के
सदा वाक्य में वे पद हैं कारक कहलाते।
कर्ता कर्म करण संबोधन सम्प्रदान हैं
अपादान संबंध अधिकरण आठ कहाते।
नीचे लिखे वाक्यों को ध्यान से पढ़िए :
- राम ने रावण को मारा।
- राम ने रावण को बाण से मारा।
- राम ने सीता के लिए रावण को मारा।
- राम ने रावण को लंका में मारा।
किसी वाक्य में जिस संज्ञा या सर्वनाम के द्वारा कोई क्रिया की जाती है, वह कारक कहलाता है। अब हमें देखना है कि उपर्युक्त वाक्यों में ‘मारा’ क्रिया के साथ कौन-कौन शब्द अपना संबंध जोड़े हुए हैं। पहले वाक्य में मारा’ क्रिया से राम और रावण का संबंध है। किस ने मारा? – राम ने। किस को मारा? – रावण को।
इसी प्रकार दूसरे वाक्य में :
किसने मारा? – राम ने।
किसको मारा ?-रावण को।
किससे मारा? – बाण से।
तीसरे वाक्य में देखिए :
किसने मारा? – राम ने।
किसको मारा? – रावण को।
किस के लिए मारा? – सीता के लिए।
अब चौथे वाक्य में देखिए:
किसने मारा? – राम ने।
किसको मारा? – रावण को।
किस में मारा? – लंका में।
यह संबंध जिन कारक – चिह्नों के लगने से जुड़ता है, उन्हें कारक की विभक्तियाँ अथवा परसर्ग कहते हैं। ‘पर’ का अर्थ है ‘ पीछे’ और ‘सर्ग’ का अर्थ है ‘जुड़ना’।
उपर्युक्त वाक्यों में ने, को, से (द्वारा), के लिए, में कारक-चिह्न या विभक्तियाँ’ अथवा ‘परसर्ग’ हैं।
कारक के भेद – karak ke bhed
एक बार फिर से शुरू में दिए गए पद को पढ़िए। इसे पढ़ने पर आप समझ गए होंगे कि कारक के आठ भेद हैं।
कारक | विभक्तियाँ |
---|---|
कर्ता | ‘ने’ या बिना किसी चिह्न के |
कर्म | को या बिना किसी चिह्न के |
करण | से, के द्वारा, के साथ, के कारण |
संप्रदान | के लिए, को, के निमित्त |
अपादान | से, (अलग होने का अर्थ) |
संबंध | का, की, के, रा, रे, री, ना, ने, नी |
अधिकरण | में, पर, ये |
संबोधन | अरे, ओ, रे, हे |
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कर्ता कारक – Karta Karak
क्रिया को करने वाला कर्ता कहलाता है।
जैसे – राम ने सोचा; वाक्य में सोचने’ की क्रिया ‘राम ने’ की। अतएव राम कर्ता कारक है।
कभी-कभी कर्ता कारक के साथ उसका परसर्ग’ने’ जुड़ा हुआ नहीं रहता। जैसे : राम घर जाता है, सुरेश सोचता है, तुम बोलते हो। इन वाक्यों में ‘राम’, ‘सुरेश’ और ‘तुम’ कर्ता कारक हैं, जबकि इन शब्दों के साथ कोई परसर्ग जुड़ा हुआ नहीं है।
कर्म कारक – Karm Karak
जिस संज्ञा अथवा सर्वनाम पद पर क्रिया के व्यापार का फल पड़े, उसे कर्म कारक कहते हैं।
जैसे – नरेश ने मोहन को मारा। इस वाक्य में ‘मोहन’ पर क्रिया के व्यापार का फल पड़ रहा है। अतएव ‘मोहन’ कर्म है।
करण कारक – Karan Karak
जिस साधन से कर्ता कोई क्रिया करता है, उसे करण कारक कहते हैं।
जैसे – मोहन ने डंडे से साँप को मारा। इस वाक्य में ‘मारने की क्रिया ‘डंडे’ से की गई। अतएव ‘डंडे’ करण कारक है।
संप्रदान कारक – Sampradan Karak
जिसके लिए क्रिया की जाती है, उसे संप्रदान कारक कहते हैं।
जैसे – मैं मोहन के लिए फल लाया। इस वाक्य में क्रिया ‘मोहन’ के लिए संपन्न हो रही है; अतएव यहाँ मोहन संप्रदान कारक है और ‘के लिए’ उसका परसर्ग है।
अपादान कारक – Apadan Karak
जिस पद से क्रिया की पृथकता सूचित हो, उसे अपादान कारक कहते हैं।
जैसे –
- हिमालय से गंगा निकलती है।
- पेड़ से पत्ते झड़ते हैं
उपर्युक्त वाक्यों में क्रियाओं का पृथक होना क्रमशः ‘हिमालय‘ से और ‘पेड़‘ से पाया जाता है। अतएव ‘हिमालय‘ और ‘पेड़‘ अपादान कारक हैं।
संबंध कारक – Sambandh Karak
क्रिया के अतिरिक्त अन्य पदों से संबंध बताने वाला पद संबध कारक कहलाता है।
जैसे –
- रमेश के पिता जी वहाँ बैठे हैं।
- ताजमहल की मीनारें बड़ी सुंदर हैं’ इस वाक्य में ‘रमेश के’ और ‘ताजमहल की’ संबंध कारक हैं।
अधिकरण कारक – Adhikaran Karak
जो पद क्रिया के स्थान अथवा आधार को प्रकट करते हैं, वे अधिकरण कारक होते हैं।
जैसे –
आकाश पर इद्रधनुष चमक रहा है।
यहाँ ‘आकाश पर’ अधिकरण कारक है। इसी प्रकार निम्नलिखित वाक्यों को देखिए:
- हिमालय पर बर्फ जमी है।
- लंका समुद्र में बसी हुई थी।
- वह व्यक्ति पेड़ के ऊपर बैठा है।
उपुर्यक्त वाक्यों में क्रमशः ‘हिमालय’ ‘समुद्र’ और ‘पेड़’ अधिकरण कारक हैं।
संबोधन कारक – Sambodhan Karak
जिस शब्द का संबोधन की तरह प्रयोग किया जाए, उसे संबोधन कारक कहते हैं।
जैसे – हे भाई! कुमित्र की संगति बहुत बुरी होती है।
यहाँ ‘हे भाई’! संबोधन कारक है।
करण और अपादान कारक का अन्तर
दोनों कारकों का चिह्न ‘से’ है; किन्तु करण का चिहन ‘से’ साथ अथवा द्वारा के अर्थ में प्रयुक्त होता है, जबकि अपादान के चिह्न ‘से’ पृथकता सूचित करता है।
कुछ संज्ञा शब्दों की विभक्तियों के रूप – karak vibhakti
‘लड़का’ शब्द के रूप
कारक | एकवचन | बहुवचन |
---|---|---|
कर्ता | लड़का, लड़के ने | लड़कों ने |
कर्म | लड़के को | लड़कों को |
करण | लड़के से (द्वारा) | लड़कों से (द्वारा) |
सम्प्रदान | लड़के के लिए | लड़कों के लिए |
अपादान | लड़के से | लड़कों से |
संबंध | लड़के का, के, की | लड़कों का, के, की |
अधिकरण | लड़कों में, पर | लड़के में, पर |
संबोधन | हे लड़को! | हे लड़के! |
‘लड़की’ शब्द के रूप
कारक | एकवचन | बहुवचन |
---|---|---|
कर्ता | लड़की, लड़की ने | लड़कियों ने |
कर्म | लड़की | लड़कियों को |
करण | लड़की के द्वारा | लड़कियों से (द्वारा) |
सम्प्रदान | लड़की के लिए | लड़कियों के लिए |
अपादान | लड़की से | लड़कियों से |
संबंध | लड़की का, के, की | लड़कियों का, के, की |
अधिकरण | लड़की में, पर | लड़कियों में, पर |
संबोधन | हे लड़की! | हे लड़कियों! |
‘गुरु’ शब्द के रूप
कारक | एकवचन | बहुवचन |
---|---|---|
कर्ता | गुरु, गुरु ने | गुरुओं ने |
कर्म | गुरु को | गुरुओं को |
करण | गुरु से द्वारा | गुरुओं से (द्वारा) |
सम्प्रदान | गुरु के लिए | गुरुओं के लिए |
अपादान | गुरु से | गुरुओं से |
संबंध | गुरु का, के, की | गुरुओं का, के, की |
अधिकरण | गुरु में, पर | गुरुओं में, पर |
संबोधन | हे गुरु! | हे गुरुओ! |
‘डाकू’ शब्द के रूप
कारक | एकवचन | बहुवचन |
---|---|---|
कर्ता | डाकू, डाकू ने | डाकुओं ने |
कर्म | डाकू को | डाकुओं को |
करण | डाकू से (द्वारा) | डाकुओं से (द्वारा) |
सम्प्रदान | डाकू के लिए | डाकुओं के लिए |
अपादान | डाकू से | डाकुओं से |
संबंध | डाकू का, के, की | डाकुओं का, के, की |
अधिकरण | डाकू में | पर डाकुओं में, पर |
संबोधन | हे डाकू! | हे डाकुओं! |
‘गौ’ शब्द के रूप
कारक | एकवचन | बहुवचन |
---|---|---|
कर्ता | गौ, गौ ने | गौएँ गौओं ने |
कर्म | गौ को | गौओं को |
करण | गौ से (द्वारा) | गौओं से (द्वारा) |
सम्प्रदान | गौ के लिए | गौओं के लिए |
अपादान | गौ से | गौओं से |
संबंध | गौ का, के, की | गौओं का, के, की |
अधिकरण | गौ में, पर | गौओं में, पर |
संबोधन | हे गौ! | हे गौओ! |
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